COP-29 शिखरसम्मेलन

COP (Conference of the Parties) संयुक्त राष्ट्र के जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क समझौते (UNFCCC) का वार्षिक सम्मेलन है, जिसमें 1992 के बाद से सदस्य देश वैश्विक जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए नीतियों और समझौतों पर चर्चा करते हैं। COP-29 सम्मेलन 2024 में अज़रबैजान के बाकू में आयोजित हुआ, जहां जलवायु वित्त, ऊर्जा संक्रमण, और वैश्विक पर्यावरणीय मुद्दों पर गहन चर्चा हुई।


मुख्य उद्देश्य और एजेंडा

इस वर्ष का मुख्य उद्देश्य जलवायु वित्त और सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) को बढ़ावा देना था। प्रमुख बिंदु निम्नलिखित थे:

  1. विकासशील देशों के लिए वित्तीय सहायता:
    विकसित देशों ने 2035 तक प्रति वर्ष $1.3 ट्रिलियन जलवायु वित्त उपलब्ध कराने की प्रतिबद्धता जताई। यह विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से निपटने और हरित ऊर्जा में निवेश के लिए मदद करेगा।
  2. उत्सर्जन में कमी का लक्ष्य:
    सभी देशों ने 2030 तक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 45% कटौती का लक्ष्य रखा। इस उद्देश्य के लिए ऊर्जा स्रोतों का डीकार्बोनाइजेशन (कार्बन मुक्त करना) प्राथमिकता बनी।
  3. नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा:
    पवन, सौर और जल ऊर्जा परियोजनाओं में निवेश बढ़ाने के लिए एक साझा ढांचा तैयार किया गया।
  4. न्यायपूर्ण बदलाव (Just Transition):
    यह सुनिश्चित किया गया कि हरित ऊर्जा की ओर बदलाव से श्रमिक और कमजोर वर्गों को नुकसान न हो।

प्रमुख घोषणाएं और समझौते

1. जलवायु वित्त:
समाप्ति समारोह में “बाकू फाइनेंस गोल” घोषित किया गया। इसके अंतर्गत:

  • विकसित देश 2035 तक हर साल $1.3 ट्रिलियन प्रदान करेंगे।
  • इस राशि में $300 बिलियन की वार्षिक अनुदान राशि शामिल होगी।
  • विकासशील देशों में ग्रीन इंफ्रास्ट्रक्चर और आपदा प्रबंधन के लिए यह धन उपयोग होगा।

2. प्रकृतिआधारित समाधान:
बायोडायवर्सिटी और पारिस्थितिकी तंत्र संरक्षण के लिए नई रणनीतियां पेश की गईं। समुद्री पारिस्थितिक तंत्र को संरक्षित करने के लिए “ब्लू क्लाइमेट फंड” की शुरुआत हुई।

3. कार्बन क्रेडिट बाजार:
एक वैश्विक कार्बन बाजार स्थापित करने पर सहमति बनी। इसके तहत, उच्च उत्सर्जन वाले देश कम उत्सर्जन वाले देशों से कार्बन क्रेडिट खरीद सकते हैं।


चुनौतियां और आलोचना

हालांकि COP-29 में कई सकारात्मक पहल की गईं, लेकिन इसे व्यापक आलोचना का सामना करना पड़ा:

  1. वित्तीय प्रतिबद्धताओं का भरोसा:
    इतिहास में अक्सर विकसित देशों द्वारा की गई वित्तीय घोषणाएं पूरी नहीं हुई हैं। कमजोर देशों ने $1.3 ट्रिलियन के लक्ष्य को “अपर्याप्त” और “सिर्फ वादों पर आधारित” बताया।
  2. लक्ष्यों की वास्तविकता:
    विशेषज्ञों का कहना है कि 1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि सीमा को बनाए रखने के लिए मौजूदा प्रयास पर्याप्त नहीं हैं।
  3. न्यायसंगत हिस्सेदारी:
    विकासशील देशों ने तर्क दिया कि जलवायु संकट का सबसे अधिक प्रभाव उन पर पड़ रहा है, जबकि इसके लिए मुख्य रूप से विकसित देश जिम्मेदार हैं।

भारत और अन्य विकासशील देशों की भूमिका

भारत, चीन, और अन्य विकासशील देशों ने नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन में अपनी प्रगति और प्रतिबद्धताओं को प्रस्तुत किया। भारत ने 2030 तक 500 GW नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता का लक्ष्य रखा है।


भविष्य की राह

COP-29 ने जलवायु परिवर्तन के खिलाफ वैश्विक सहयोग की नींव को मजबूत किया। हालांकि चुनौतियां बनी हुई हैं, लेकिन जलवायु वित्त और ऊर्जा परिवर्तन में हुई प्रगति सकारात्मक संकेत देती है।
आने वाले वर्षों में इन समझौतों को लागू करना और अंतर्राष्ट्रीय निगरानी बढ़ाना आवश्यक होगा।

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